Shivratri

महाशिवरात्रि व्रत अध्‍यात्‍म से जुड़े लोगों के लिए अलग-अलग मायने रखता है। यह व्रत सांसारिक सुख-भोग की महत्‍वाकांक्षा रखने वाले और गृहस्‍थ जीवन बिताने वाले सभी के लिए महत्‍वपूर्ण माना जाता है। गृहस्‍थ आश्रम के लोग महाशिवरात्रि के व्रत को भगवान शिव और माता पार्वती की वैवाहिक वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं। वहीं सिद्ध साधना करने वाले इसे शत्रु पर जीत के रूप में देखते हैं। संतों और नागाओं के लिए शिवजी प्रथम गुरु और आदि गुरु हैं। महाशिवरात्रि का व्रत शिवभक्‍त अपने-अपने तरीके से रखते हैं।
गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) कह रहा है कि -
ओम् इति एकाक्षरम् ब्रह्म, व्याहरन् माम् अनुस्मरन्,
भावार्थ है कि श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेतवत् प्रवेश करके ब्रह्म/काल कह रहा है कि मुझ ब्रह्म की साधना केवल एक ओम् नाम से मृत्यु पर्यन्त करने वाले साधक को मुझ से मिलने वाला लाभ प्राप्त होता है, अन्य कोई मन्त्र मेरी भक्ति का नहीं है।
वास्तविक गायत्री मंत्र - 
यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 में कहीं भी ॐ नहीं लिखा है। ये अज्ञानी संतो की अपनी सोच से लगाया गया है। यह मंत्र पूर्ण परमात्मा के लिए है। जबकि ॐ काल ब्रह्म का है

श्री देवी महापुराण के सातवें स्कंध पृष्ठ 562-563 पर प्रमाण है कि श्री देवी जी ने राजा हिमालय को उपदेश देते हुए कहा है कि हे राजन! अन्य सब बातों को छोड़कर मेरी भक्ति भी छोड़कर केवल एक ऊँ नाम का जाप कर, “ब्रह्म” प्राप्ति का यही एक मंत्र है। भावार्थ है कि ब्रह्म साधना का केवल एक ओम् (ऊँ) नाम का जाप है, इससे ब्रह्म की प्राप्ति होती है और वह साधक ब्रह्म लोक में चला जाता है।

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