कबीर साहेब (कबीरदास) का जीवन परिचय
day, May 31, 2020
कबीर साहेब (कबीरदास) का जीवन परिचय
कबीर साहेब की जीवनी
कबीर साहेब की जीवनी में उनकेे जन्म अगर हम बात करें तो बहुत सारे लोगों केे अलग अलग मत है। कुछ तो यू कहते हैंं कि कबीर साहिब जी विधवा केे पुत्र थे, जिसने लोक लाज के कारण लहरतारा तालाब में छोड़ दिया था। जहां पर नीरू नामक मुसलमान को मिले। लेकिन अगर हम धनी धर्मदास जी द्वारा लिखित कबीर सागर को अगर पढ़े तो बात कुछ अलग ही है, और हम इसी बात को सही मानेंगे क्योंकि यह प्रमाणित भी है।
कबीर सागर के अनुसार और अन्य धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब आदि के अनुसार कबीर साहेब काशी में लहरतारा तालाब के अंदर कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। जिनके प्रत्यक्ष गवाह रामानंद जी के शिष्य अष्टानंद जी थे।

कबीर साहेब या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।
वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी।उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।
पुख्ता प्रमाण के अनुसार कबीर साहेब का कमल के फूल पर आगमन विक्रमी संवत 1455 सन 1398 में ब्रह्म मुहूर्त में आए। उस समय नीरू नीमा नामक मुसलमान दंपति जोकि पूर्व में हिंदू थे वहां पर नहाने के लिए आए हुए थे तथा उनको पूर्व में कोई संतान भी नहीं थी। फूल पर विराजमान कबीर साहिब जी को नीरू नीमा अपने साथ लेकर गए। वही 25 दिन तक उस छोटे से बच्चे ने किसी भी प्रकार का कोई आहार नहीं किया। जब काशी वालों ने प्रथम बार उस बच्चे को देखा तो हर कोई अचंभित हो रहा था क्योंकि वह बच्चा इतना खूबसूरत था कि हर कोई उसे अवतार का रूप कह रहा था।
आज भी काशी के लोगों की मान्यता है कि कबीर साहिब जी ने कुंवारी गाय का दूध पिया था और उसी का इसे उनकी परवरिश हुई थी।
कबीर साहिब जी की लीलाएं
वह कहते हैं ना संत भगवान का रूप होते हैं और हकीकत भी यही है। मैं तो यू कहूंगा की संत भगवान का रूप ही नहीं स्वयं भगवान ही होते हैं।
संत कबीर साहिब जी ने भी अपने जीवन काल में अनेक प्रकार की लीलाएं की तथा उन्होंने समाज में व्याप्त कुप्रथा पाखंड आदि को मिटाने में आम भूमिका निभाई।
पितरो को जल देना
एक समय कुछ ब्राह्मण गंगा घाट के किनारे खड़े होकर पितरों को जल दे रहे थे उसी समय कबीर साहिब जी ने उनके क्रियाकलाप को देखा और वह भी अपने दोनों हाथों से जल देने लगे। ब्राह्मण के पूछने पर कबीर साहिब ने कहा कि मैं यहां जल मेरे घर के पास एक बागवानी बनी हुई है वहां के लिए मैं अपने दोनों हाथों से जल दे रहा हूं। इस पर ब्राह्मण ने कहा कि आप यहां से इस तरह से बागवानी में जल नहीं दे सकते। तब कबीर साहिब जी ने भी कहा कि तो फिर आप इस गंगा घाट से पितरों को कैसे जल पहुंचा रहे हो जो के ऊपर के लोग में विराजमान है। इन बात से ब्राह्मण उनसे नाराज हो जाते थे।
स्वामी रामादेवानंद जी महाराज का अंधविश्वास तोड़ना तथा सद्भक्ति के लिए प्रेरित करना-
5 वर्ष की आयु में 104 वर्ष के रामानंद को को पूरा ज्ञान समजाया वेदों का रहस्य ,
जब स्वामी रामानंद जी ने कहा तुम तो नीच जाती छोटी जाती के हो और में ब्रामण हु, तभी कबीर। जी 5 वर्ष में लीलामय आयु में बोले
जाती न पूछ साध की ,पूछ लीजियो ज्ञान ।
मोल करो तलवार का , पड़ी रहने दो म्यान।
रामानंद ने कहा तुम अपने आप को भगवान कह रहे हो तुम तो एक जुलाहा के टुकड़े में पह रहे हो बड़े हो रहे हो। रामानंद जी कहा तुम इतनी छोटी उम्र में मुज 104 वर्ष के आयु को ज्ञान समझा रहे हों कुजात हो तुम, (कुजात मतलब न माँ बाप से जन्मे)। तुम यह महापुरुष की इतनी अच्छा ज्ञान कहा से हुआ, फिर धिरे - धिरे कबीर जी को रामानंद जी समझने लगे , फिर कबीर जी ने सतलोक दिया जहा से वो आये थे,
तब रामानंद जी ने कहा
रामानंद जी को 104 वर्ष की आयु में सत्य ज्ञान समझाया तथा सतलोक दिखाया,
दोहू ठौर है एक तू , भय्या एक से दोये। गरीबदास हम करने उतरे है मघ जोय।
बोलत रामानंद जी सुन कबीर करतार । गरीब दास सब रूप में, तू ही बोलनहार।।
ऐसी ऐसी बहुत सारी लाए हैं जो कि हम आपको आगे बताएंगे|
कबीर साहेब का मगर के लिए प्रस्थान
_ काशी के पंडितों ने एक मिथक फैला दिया था कि अगर मगहर में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसे गधे का अगला जन्म मिलेगा और अगर काशी में उसकी मृत्यु हो जाती है, तो वह स्वर्ग को प्राप्त करेगा। _ _ कबीर जी मिथक को दूर करने के लिए काशी से मगहर आए थे कि सच्चा उपासक मर सकता है कहीं भी वह भगवान को पा लेगा ।_
_ कबीर जी के सभी हिन्दू और मुस्लिम शिष्य एकत्रित हुए। मुस्लिम शासक बिजली खान पठान और हिंदू राजा वीर सिंह बघेल भी स्वामी कबीर के पार्थिव शरीर को प्राप्त करने और उनके धार्मिक तरीके के अनुसार अपने गुरु का अंतिम संस्कार करने के लिए वहां मौजूद थे।

कबीर जी ने उन्हें सख्ती से कहा कि वे उनके शरीर के लिए संघर्ष न करें, बल्कि शांति से रहें। कबीर साहब ने खुद को एक और चादर से ढँक लिया। कुछ समय बाद, कबीर जी ने आकाशवाणी की कि वह सतलोक जा रहे हैं जहाँ से वह आए हैं। कबीर जी के मृत शरीर को चादर के नीचे नहीं पाया गया था, इसके बजाय केवल सुगंधित फूल पाए गए थे। कबीर साहिब ने हिंदुओं और मुसलमानों को सद्भाव के साथ रहने का आदेश दिया। हिंदू और मुस्लिम दोनों ने आपस में फूल बांटे और स्मारक बनाया जो आज भी काशी में है ।
The Leader at May 31
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